Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय उम्र की डोर

उम्र की डोर से फ़िर 
एक मोती झड़ रहा है
तारीख़ों के जीने से 
दिसम्बर फ़िर उतर रहा है..
कुछ चेहरे घटे, चन्द यादें
जुड़ी, 
उम्र का पन्छी नित दूर और 
दूर निकल रहा है___
गुज़रे लम्हों पर झीना-झीना सा
इक़ पर्दा गिर रहा है___
वक़्त है कि सब कुछ समेटे
बादल बन उड़ रहा है।

फ़िर एक दिसम्बर गुज़र रहा है
लो इक्कीसवीं सदी को तेइसवां साल लग रहा है ll 🙏
 
 🌷🌷शुभ मंगल प्रभात 🌷🌷
सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर 

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4 Comments

ओहो लाजवाब लाजवाब लाजवाब

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Swati chourasia

22-Dec-2022 05:36 AM

बहुत खूब 👌

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Sachin dev

19-Dec-2022 02:01 PM

Well done

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